Lekhika Ranchi

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उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद


गोदान--मुंशी प्रेमचंद


पुर चलने लगा। धनिया को होरी ने न आने दिया। रूपा क्यारी बराती थी। और सोना मोट ले रही थी। रूपा गीली मिट्टी के चूल्हे और बरतन बना रही थी, और सोना सशंक आँखों से सोनारी की ओर ताक रही थी। शंका भी थी, आशा भी थी, शंका अधिक थी, आशा कम। सोचती थी, उन लोगों को रुपए मिल रहे हैं, तो क्यों छोड़ने लगे। जिनके पास पैसे हैं, वे तो पैसे पर और भी जान देते हैं। और गौरी महतो तो एक ही लालची हैं। मथुरा में दया है, धरम है; लेकिन बाप की इच्छा जो होगी, वही उसे माननी पड़ेगी; मगर सोना भी बचा को ऐसा फटकारेगी कि याद करेंगे। वह साफ़ कहेगी, जाकर किसी धनी की लड़की से ब्याह कर, तुझ-जैसे पुरुष के साथ मेरा निबाह न होगा। कहीं गौरी महतो मान गये, तो वह उनके चरन धो-धोकर पियेगी। उनकी ऐसी सेवा करेगी कि अपने बाप की भी न की होगी। और सिलिया को भर-पेट मिठाई खिलायेगी। गोबर ने उसे जो रुपया दिया था उसे वह अभी तक संचे हुए थी। इस मृदु कल्पना से उसकी आँखें चमक उठीं और कपोलों पर हलकी-सी लाली दौड़ गई। मगर सिलिया अभी तक आयी क्यों नहीं? कौन बड़ी दूर है। न आने दिया होगा उन लोगों ने। अहा! वह आ रही है; लेकिन बहुत धीरे-धीरे आती है। सोना का दिल बैठ गया। अभागे नहीं माने साइत, नहीं सिलिया दौड़ती आती। तो सोना से हो चुका ब्याह। मुँह धो रखो। सिलिया आयी ज़रूर पर कुएँ पर न आकर खेत में क्यारी बराने लगी। डर रही थी, होरी पूछेंगे कहाँ थी अब तक, तो क्या जवाब देगी। सोना ने यह दो घंटे का समय बड़ी मुश्किल से काटा। पुर छूटते ही वह भागी हुई सिलिया के पास पहुँची।

'वहाँ जाकर तू मर गयी थी क्या! ताकते-ताकते आँखें फूट गयीं। '
सिलिया को बुरा लगा -- तो क्या मैं वहाँ सोती थी। इस तरह की बातचीत राह चलते थोड़े ही हो जाती है। अवसर देखना पड़ता है। मथुरा नदी की ओर ढोर चराने गये थे। खोजती-खोजती उसके पास गयी और तेरा सन्देसा कहा। ऐसा परसन हुआ कि तुझसे क्या कहूँ। मेरे पाँव पर गिर पड़ा और बोला -- सिल्लो, मैंने तो जब से सुना है कि सोना मेरे घर में आ रही है, तब से आँखों की नींद हर गयी है। उसकी वह गालियाँ मुझे फल गयीं; लेकिन काका को क्या करूँ। वह किसी की नहीं सुनते।
सोना ने टोका -- तो न सुनें। सोना भी ज़िद्धिन है। जो कहा है वह कर दिखायेगी। फिर हाथ मलते रह जायँगे।
'बस उसी छन ढोरों को वहीं छोड़, मुझे लिये हुए गौरी महतो के पास गया। महतो के चार पुर चलते हैं। कुआँ भी उन्हीं का है। दस बीघे का ऊख है। महतो को देख के मुझे हँसी आ गयी। जैसे कोई घसियारा हो। हाँ, भाग का बली है। बाप-बेटे में ख़ूब कहा-सुनी हुई। गौरी महतो कहते थे, तुझसे क्या मतलब, मैं चाहे कुछ लूँ या न लूँ; तू कौन होता है बोलनेवाला। मथुरा कहता था, तुमको लेना-देना है, तो मेरा ब्याह मत करो, मैं अपना ब्याह जैसे चाहूँगा कर लूँगा। बात बढ़ गयी और गौरी महतो ने पनहियाँ उतारकर मथुरा को ख़ूब पीटा। कोई दूसरा लड़का इतनी मार खाकर बिगड़ खड़ा होता। मथुरा एक घूँसा भी जमा देता, तो महतो फिर न उठते; मगर बेचारा पचासों जूते खाकर भी कुछ न बोला। आँखों में आँसू भरे, मेरी ओर ग़रीबों की तरह ताकता हुआ चला गया। तब महतो मुझ पर बिगड़ने लगे। सैकड़ों गालियाँ दीं; मगर मैं क्यों सुनने लगी थी। मुझे उनका क्या डर था?
मैंने सफ़ा कह दिया -- महतो, दो-तीन सौ कोई भारी रक़म नहीं है, और होरी महतो, इतने में बिक न जायँगे, न तुम्हीं धनवान हो जाओगे, वह सब धन नाच-तमासे में ही उड़ जायगा, हाँ, ऐसी बहू न पाओगे।
सोना ने सजल नेत्रों से पूछा -- महतो इतनी ही बात पर उन्हें मारने लगे?
सिलिया ने यह बात छिपा रक्खी थी। ऐसी अपमान की बात सोना के कानों में न डालना चाहती थी; पर यह प्रश्न सुनकर संयम न रख सकी। बोली -- वही गोबर भैयावाली बात थी।
महतो ने कहा -- आदमी जूठा तभी खाता है जब मीठा हो। कलंक चाँदी से ही धुलता है।
इस पर मथुरा बोला -- काका कौन घर कलंक से बचा हुआ है। हाँ, किसी का खुल गया, किसी का छिपा हुआ है।
गौरी महतो भी पहले एक चमारिन से फँसे थे। उससे दो लड़के भी हैं। मथुरा के मुँह से इतना निकलना था कि डोकरे पर जैसे भूत सवार हो गया। जितना लालची है, उतना ही क्रोधी भी है। बिना लिये न मानेगा। दोनों घर चलीं। सोना के सिर पर चरसा, रस्सा और जुए का भारी बोझ था; पर इस समय वह उसे फूल से भी हल्का लग रहा था। उसके अन्तस्तल में जैसे आनन्द और स्फूर्ति का सोता खुल गया हो। मथुरा की वह वीर मूर्ति सामने खड़ी थी, और वह जैसे उसे अपने हृदय में बैठाकर उसके चरण आँसुओं से पखार रही थी। जैसे आकाश की देवियाँ उसे गोद में उठाये आकाश में छाई हुई लालिमा में लिये चली जा रही हों।
उसी रात को सोना को बड़े ज़ोर का ज्वर चढ़ आया। तीसरे दिन गौरी महतो ने नाई के हाथ यह पत्र भेजा --
'स्वस्ती श्री सवोर्पमा जोग श्री होरी महतो को गौरीराम का राम-राम बाँचना। आगे जो हम लोगों में दहेज की बातचीत हुई थी, उस पर हमने शान्त मन से विचार किया, समझ में आया कि लेन-देन से वर और कन्या दोनों ही के घरवाले जेरबार होते हैं। जब हमारा-तुम्हारा सम्बन्ध हो गया, तो हमें ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि किसी को न अखरे। तुम दान-दहेज की कोई फ़िकर मत करना, हम तुमको सौगन्ध देते हैं। जो कुछ मोटा-महीन जुरे बरातियों को खिला देना। हम वह भी न माँगेंगे। रसद का इन्तज़ाम हमने कर लिया है। हाँ, तुम ख़ुशी-खुर्रमी से हमारी जो ख़ातिर करोगे वह सिर झुकाकर स्वीकार करेंगे। '
होरी ने पत्र पढ़ा और दौड़े हुए भीतर जाकर धनिया को सुनाया। हर्ष के मारे उछला पड़ता था, मगर धनिया किसी विचार में डूबी बैठी रही। एक क्षण के बाद बोली -- यह गौरी महतो की भलमनसी है; लेकिन हमें भी तो अपने मरजाद का निबाह करना है। संसार क्या कहेगा! रुपया हाथ का मैल है। उसके लिए कुल-मरजाद नहीं छोड़ा जाता। जो कुछ हमसे हो सकेगा, देंगे और गौरी महतो को लेना पड़ेगा। तुम यही जवाब लिख दो। माँ-बाप की कमाई में क्या लड़की का कोई हक़ नहीं है? नहीं, लिखना क्या है, चलो, मैं नाई से सन्देश कहलाये देती हूँ। होरी हतबुद्धि-सा आँगन में खड़ा था और धनिया उस उदारता की प्रतिक्रिया में जो गौरी महतो की सज्जनता ने जगा दी थी, सन्देशा कह रही थी। फिर उसने नाई को रस पिलाया और बिदाई देकर बिदा किया।
वह चला गया तो होरी ने कहा -- यह तूने क्या कर डाला धनिया? तेरा मिज़ाज आज तक मेरी समझ में न आया। तू आगे भी चलती है, पीछे भी चलती है। पहले तो इस बात पर लड़ रही थी कि किसी से एक पैसा करज़ मत लो, कुछ देने-दिलाने का काम नहीं है, और जब भगवान् ने गौरी के भीतर पैठकर यह पत्र लिखवाया तो तूने कुल-मरजाद का राग छेड़ दिया। तेरा मरम भगवान् ही जाने।
धनिया बोली -- मुँह देखकर बीड़ा दिया जाता है, जानते हो कि नहीं। तब गौरी अपनी सान दिखाते थे, अब वह भलमनसी दिखा रहे हैं। ईट का जवाब चाहे पत्थर हो; लेकिन सलाम का जवाब तो गली नहीं है।
होरी ने नाक सिकोड़कर कहा -- तो दिखा अपनी भलमनसी। देखें, कहाँ से रुपए लाती है।
धनिया आँखें चमकाकर बोली -- रुपए लाना मेरा काम नहीं है, तुम्हारा काम है। '
'मैं तो दुलारी से ही लूँगा। '
'ले लो उसी से। सूद तो सभी लेंगे। जब डूबना ही है, तो क्या तालाब और क्या गंगा। '
होरी बाहर आकर चिलम पीने लगा। कितने मज़े से गला छूटा जाता था; लेकिन धनिया जब जान छोड़े तब तो। जब देखो उल्टी ही चलती है। इसे जैसे कोई भूत सवार हो जाता है। घर की दशा देखकर भी इसकी आँखें नहीं खुलतीं।

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